Friday 13 November 2020

प्रशंसा पत्र

आपस की बात सुने ब्लॉग पर पर्यावरण महोत्सव काव्यमय पखवाड़ा 2020 का आयोजन किया गया था जिस पर दूरदराज के मेरे साथी मित्र कवि, बड़े जन सभी ने कविताओं और लेखों के माध्यम से तथा अपने प्रकृति प्रेम को दर्शाकर अपनी सहभागिता प्रस्तुत की।जिसमें एक छोटी सी जगह मै भी बना पाया। इसके लिए मैं ब्लॉगर टीम का धन्यवाद करता हूं।


Thursday 9 July 2020

भींगते नयन


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अश्क़ में भीगते नयन मेरे,
कह रहे हैं तू रोक मुझे।
मदहोश ना हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।

अंबर भी झुठले होंगे अब,
बिन बदरा जो बरस पड़े।
वह मीठी सी भीगी यादों को,
जब पुलकित नयना तरस पड़े।
मदहोश ना हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।

अश्कों का समुंदर बन बैठा,
हर बूंद में अपनी बात भरे।
जब-जब बे-मौसम बदली है वो,
यह बिन बात कहे ही छलक पड़े।
मदहोश न हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।

उसकी हर रुसवाई में,
आहट सी उसकी परछाई से।
सुनने को उसकी बातों को,
मेरे लफ्ज़ यूं ही बोल पड़े।
मदहोश ना हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।

© सतीश कुमार सोनी 
जैतहरी जिला अनूपपुर (म० प्र०)

Wednesday 3 June 2020

(लघुकथा) मेरा क्या कसूर था - सतीश कुमार सोनी


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ज भी वह दिन मैं नहीं भूल सका, वह हवा का सरसराता झोंका जो देखते ही देखते तूफान में बदल गया और मेरे सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। दोपहर का वक्त था, मैं भोजन करके लेटा हुआ था कि अचानक मैंने घर के बाहर बंधे हुए गायों और भैंसों के रंभने की आवाज सुनी। मैंने बाहर निकल कर देखा तो तेज हवा का सरसराता झोंका और काले घने बादल मेरी ओर चले आ रहे थे। मै आनन-फानन में मवेशियों को गौशाला में बांध आया और चीजों को समेटने में लग गया। चीजों को समेटकर मैं जैसे ही अंदर जाता कि तेज आंधी के साथ बारिश और ओलों की तीव्र वर्षा होने लगी। मैं अपने घर की खपरैल से बनी छत को निहारता हुआ भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान मेरी गरीबी की लाज रख लेना। पर कोई होता तो सुनता,ओलो ने घर की छत पर बड़े-बड़े गड्ढे कर दिए जिससे अंदर आता पानी मेरे पूरे घर में भर गया। रसोई घर में रखे बर्तन मिट्टी का चूल्हा सब तहस-नहस हो गया और मेरा पूरा परिवार आंखों में आंसू लिए सर पर हाथ धर कर बैठ गया। कुछ देर बाद बारिश बंद हुई तो मैं एक आस में तेजी से बाहर भागा,और खेत में बर्बाद हुए अनाजों को देखकर सहम गया। मेरी सारी उम्मीदें अब चकनाचूर हो चुकी थी। घर लौटा तो जैसे ही मैंने अपनी बूढ़ी मां की आंखों की लालिमा और उससे टपकते हुए आंसुओं को देखा तो मैं वहीं गिर पड़ा और ऊपर की ओर देखकर भगवान से यह कहने लगा, कि हे ईश्वर मैं तो गरीब ही खुश था, इसमें मेरा क्या कसूर था।


© सतीश कुमार सोनी
जैतहरी जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश

Sunday 31 May 2020

र्स्‍वग हमने भी कहांं देखा है - सतीश कुमार सोनी

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एक रहस्यमई दुनिया जिसे किसी ने नहीं देखा, ना किसी मनुष्य ने ना ही इस दुनिया के किसी प्राणी ने। लेकिन स्वर्ग में जाने की लालसा हर किसी को है। आखिर यह स्वर्ग है क्या? और आया कहां से। हमने तो मात्र कई कथा कहानियों में सुन रखा है कि मरणोपरांत आपके जीवन के खाता-बही के आधार पर आपको स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

जीवन का हर अगला क्षण भविष्य है,अर्थात मरणोपरांत कि अगर बात है तो हम अपने भविष्य को अपने कर्मों के आधार पर अलट-पलट रहे होते हैं। कर्म और कर्म-फल यही हमारे विचारों को भ्रमित किए हुए हैं कि हमें स्वर्ग मिलेगा या नहीं। हम लगातार अपने जीवन शैली के हिसाब से अपने कार्यों में लगे होते हैं, तथा बीच-बीच में हम खुद ही अपने कार्यों को अपने ज्ञान के हिसाब से आंक रहे होते हैं कि कहीं हमारा यह कार्य हमें पाप का भागीदार तो नहीं बना देगा। और फिर सुख की इच्छा लेकर हम जीवन में अनेक कर्म करते हैं,और जब हमारे लाख अच्छे कर्म करने के बाद भी जब हमारे जीवन में हमारे अनुसार कार्य नहीं हो रहे होते हैं, तो हम इसे सुधारने के लिए कई धर्मात्माओ का भी शरण लेते हैं। जिससे उनके द्वारा बताई गई विधियों,तरीकों के माध्यम से हम अपने कर्मों को बदल कर एक सुखद जीवन की चेष्टा कर रहे होते हैं। महात्माओं के द्वारा बताई गई हर वह बातें चाहे वह मंगलवार,शनिवार व्रत हो, शाम के बाद भोजन ना लेना, भोजन में लहसुन प्याज ना खाना, दान-दक्षिणा करना आदि बातों का अनुशरण करते हैं। और तो और तीर्थ स्थानों में जाकर लोगों की मान्यता और अपनी श्रद्धा अनुसार नर्मदा जी,सोनभद्र,गंगा जी आदि पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर अपने जीवन के खाता-बही को बैलेंस करने की कोशिश कर रहे होते है। जिससे हमें वर्तमान में सुख-शांति और मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।

परंतु मनुष्य शरीर इतना लोभी है कि उसे यह तभी याद आता है जब उसके मनोवांछित कार्यफल उसके कार्य अनुसार प्राप्त नहीं हो रहे होते हैं। तथा लगातार संतुष्टि ना मिलने पर ही वह पुनः धर्म-कर्म के कार्य द्वारा सुखों की प्राप्ति चाहता है। जबकि जीवन का मूल्य सुख तो हर व्यक्ति के अंतर्मन में ही निहित है, जिसे वह जब चाहे अपने अंतर्मन की शक्ति द्वारा खुद को कठिन से कठिन परिस्थितियों में आत्मबल प्रदान कर सकता है।

किंतु वह यह विचार नहीं कर रहा होता है,कि जीवन के सांसारिक सुखों को प्राप्त कर लेना और अपने कर्मो को पाप-पुण्य में विभाजित करके जीवन के नैसर्गिक मूल्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। अपितु जीवन के नैतिक मूल्यों के साथ साथ हमारे जीवन जीने का उद्देश्य भी निश्चित नहीं होता है। जिसके कारण हम बहुत सी अनुचित बातों में भी अपना समय गवा देते हैं। अतः जीवन के उद्देश को निश्चित कर हमें उसी आधार पर अपने जीवन को आगे ले जाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से हमें अपने कर्मों और कर्म फलों को समेटने तथा जीवन के खाता-बही को बैलेंस करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। तथा यह भी भय नहीं रहेगा कि हमें स्वर्ग की प्राप्ति होगी या नहीं। हमारे जीवन का उद्देश्य ही हमारे वर्तमान और भविष्य की चिंताओं से मुक्ति दिला कर एक सुखमय जीवन प्रदान कर सकता है।



               © सतीश  कुमार सोनी 
               जैतहरी जिला अनूपपुर (म०प्र०) 

 



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