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Sunday, 7 June 2020
हे तरुवर: सतीश कुमार सोनी
Labels:
Poem
Location:Jaithari,Anuppur MP
Jaithari, Madhya Pradesh, India
Wednesday, 3 June 2020
(लघुकथा) मेरा क्या कसूर था - सतीश कुमार सोनी
आज भी वह दिन मैं नहीं भूल सका, वह हवा का सरसराता झोंका जो देखते ही देखते तूफान में बदल गया और मेरे सारे सपनों को चकनाचूर कर दिया। दोपहर का वक्त था, मैं भोजन करके लेटा हुआ था कि अचानक मैंने घर के बाहर बंधे हुए गायों और भैंसों के रंभने की आवाज सुनी। मैंने बाहर निकल कर देखा तो तेज हवा का सरसराता झोंका और काले घने बादल मेरी ओर चले आ रहे थे। मै आनन-फानन में मवेशियों को गौशाला में बांध आया और चीजों को समेटने में लग गया। चीजों को समेटकर मैं जैसे ही अंदर जाता कि तेज आंधी के साथ बारिश और ओलों की तीव्र वर्षा होने लगी। मैं अपने घर की खपरैल से बनी छत को निहारता हुआ भगवान से प्रार्थना करने लगा कि हे भगवान मेरी गरीबी की लाज रख लेना। पर कोई होता तो सुनता,ओलो ने घर की छत पर बड़े-बड़े गड्ढे कर दिए जिससे अंदर आता पानी मेरे पूरे घर में भर गया। रसोई घर में रखे बर्तन मिट्टी का चूल्हा सब तहस-नहस हो गया और मेरा पूरा परिवार आंखों में आंसू लिए सर पर हाथ धर कर बैठ गया। कुछ देर बाद बारिश बंद हुई तो मैं एक आस में तेजी से बाहर भागा,और खेत में बर्बाद हुए अनाजों को देखकर सहम गया। मेरी सारी उम्मीदें अब चकनाचूर हो चुकी थी। घर लौटा तो जैसे ही मैंने अपनी बूढ़ी मां की आंखों की लालिमा और उससे टपकते हुए आंसुओं को देखा तो मैं वहीं गिर पड़ा और ऊपर की ओर देखकर भगवान से यह कहने लगा, कि हे ईश्वर मैं तो गरीब ही खुश था, इसमें मेरा क्या कसूर था।
© सतीश कुमार सोनी
जैतहरी जिला अनूपपुर मध्य प्रदेश
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