अश्क़ में भीगते नयन मेरे,
कह रहे हैं तू रोक मुझे।
मदहोश ना हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।
अंबर भी झुठले होंगे अब,
बिन बदरा जो बरस पड़े।
वह मीठी सी भीगी यादों को,
जब पुलकित नयना तरस पड़े।
मदहोश ना हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।
अश्कों का समुंदर बन बैठा,
हर बूंद में अपनी बात भरे।
जब-जब बे-मौसम बदली है वो,
यह बिन बात कहे ही छलक पड़े।
मदहोश न हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।
उसकी हर रुसवाई में,
आहट सी उसकी परछाई से।
सुनने को उसकी बातों को,
मेरे लफ्ज़ यूं ही बोल पड़े।
मदहोश ना हो उनकी आंखों में,
जो बात किसी की और कहे।
© सतीश कुमार सोनी
जैतहरी जिला अनूपपुर (म० प्र०)