या लिख दूं कोई ऐसा गीत।
हो चित्त प्रसन्न सबका यह मन,
शब्द ना करे भयभीत।
शब्द करें मेरे दिल की बात,
हो कुछ इसका ऐसा अंदाज।
करे मंत्रमुद्ध और विवश पठन को,
हर पंक्ति कहे कविता का राज।
प्रेम विरग, श्रंगार मिला दूं,
या घोल दूं कोई ऐसा राग।
मिल सब कोई बात सिखा दे,
हो जाये इससे अनुराग।
शब्द-शब्द में यश हो ऐसा,
संत की वाणी में मधुरस जैसा।
सभी के मन को तृप्त करे यह,
चाहे व्यक्ति हो कैसा।
चिंतन को मजबूर करा दे,
लेखक के भावों को बतलादे।
दे जाये कोई सीख जरा सी,
शब्दो की महिमा को समझादे।
अंत सुशोभित हो इसका,
सबके मन में घर कर जाये।
हो कुछ ऐसी बात भी इसमें,
ना पढने वाला भी पढ जाये ।
© सतीश कुमार सोनी
thank you Megha..
ReplyDeleteलिखना...खुद को चित्रित करना है. जब मन उड़ने को होता है तब लेखन प्रस्फुटित होता है. लिखना स्वयं से स्वयं को जोड़ना है. लिखकर आप स्वयं को देख सकते हैं. ठीक वैसा ही जैसा आप स्वयं को दर्पण में देखते है किसी फोटोग्राफ में देखते हैं. मन अभिव्यक्त होना चाहे तो उसे रोकना कैसा... और अधिक पर लगें और आपका मन इसी तरह ऊँची-ऊँची उड़ान भरता रहे, और नित नवीन काव्य सृजन करता रहे. बहुत-बहुत बधाई.
ReplyDeleteशुक्रिया सर।
Deleteआपके सानिध्य में ऐसे ही साथ साथ चलता रहूं यही कामना है।