Sunday 31 May 2020

र्स्‍वग हमने भी कहांं देखा है - सतीश कुमार सोनी

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एक रहस्यमई दुनिया जिसे किसी ने नहीं देखा, ना किसी मनुष्य ने ना ही इस दुनिया के किसी प्राणी ने। लेकिन स्वर्ग में जाने की लालसा हर किसी को है। आखिर यह स्वर्ग है क्या? और आया कहां से। हमने तो मात्र कई कथा कहानियों में सुन रखा है कि मरणोपरांत आपके जीवन के खाता-बही के आधार पर आपको स्वर्ग की प्राप्ति होगी।

जीवन का हर अगला क्षण भविष्य है,अर्थात मरणोपरांत कि अगर बात है तो हम अपने भविष्य को अपने कर्मों के आधार पर अलट-पलट रहे होते हैं। कर्म और कर्म-फल यही हमारे विचारों को भ्रमित किए हुए हैं कि हमें स्वर्ग मिलेगा या नहीं। हम लगातार अपने जीवन शैली के हिसाब से अपने कार्यों में लगे होते हैं, तथा बीच-बीच में हम खुद ही अपने कार्यों को अपने ज्ञान के हिसाब से आंक रहे होते हैं कि कहीं हमारा यह कार्य हमें पाप का भागीदार तो नहीं बना देगा। और फिर सुख की इच्छा लेकर हम जीवन में अनेक कर्म करते हैं,और जब हमारे लाख अच्छे कर्म करने के बाद भी जब हमारे जीवन में हमारे अनुसार कार्य नहीं हो रहे होते हैं, तो हम इसे सुधारने के लिए कई धर्मात्माओ का भी शरण लेते हैं। जिससे उनके द्वारा बताई गई विधियों,तरीकों के माध्यम से हम अपने कर्मों को बदल कर एक सुखद जीवन की चेष्टा कर रहे होते हैं। महात्माओं के द्वारा बताई गई हर वह बातें चाहे वह मंगलवार,शनिवार व्रत हो, शाम के बाद भोजन ना लेना, भोजन में लहसुन प्याज ना खाना, दान-दक्षिणा करना आदि बातों का अनुशरण करते हैं। और तो और तीर्थ स्थानों में जाकर लोगों की मान्यता और अपनी श्रद्धा अनुसार नर्मदा जी,सोनभद्र,गंगा जी आदि पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर अपने जीवन के खाता-बही को बैलेंस करने की कोशिश कर रहे होते है। जिससे हमें वर्तमान में सुख-शांति और मरणोपरांत स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।

परंतु मनुष्य शरीर इतना लोभी है कि उसे यह तभी याद आता है जब उसके मनोवांछित कार्यफल उसके कार्य अनुसार प्राप्त नहीं हो रहे होते हैं। तथा लगातार संतुष्टि ना मिलने पर ही वह पुनः धर्म-कर्म के कार्य द्वारा सुखों की प्राप्ति चाहता है। जबकि जीवन का मूल्य सुख तो हर व्यक्ति के अंतर्मन में ही निहित है, जिसे वह जब चाहे अपने अंतर्मन की शक्ति द्वारा खुद को कठिन से कठिन परिस्थितियों में आत्मबल प्रदान कर सकता है।

किंतु वह यह विचार नहीं कर रहा होता है,कि जीवन के सांसारिक सुखों को प्राप्त कर लेना और अपने कर्मो को पाप-पुण्य में विभाजित करके जीवन के नैसर्गिक मूल्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता। अपितु जीवन के नैतिक मूल्यों के साथ साथ हमारे जीवन जीने का उद्देश्य भी निश्चित नहीं होता है। जिसके कारण हम बहुत सी अनुचित बातों में भी अपना समय गवा देते हैं। अतः जीवन के उद्देश को निश्चित कर हमें उसी आधार पर अपने जीवन को आगे ले जाने का प्रयास करना चाहिए। ऐसा करने से हमें अपने कर्मों और कर्म फलों को समेटने तथा जीवन के खाता-बही को बैलेंस करने की आवश्यकता नहीं रहेगी। तथा यह भी भय नहीं रहेगा कि हमें स्वर्ग की प्राप्ति होगी या नहीं। हमारे जीवन का उद्देश्य ही हमारे वर्तमान और भविष्य की चिंताओं से मुक्ति दिला कर एक सुखमय जीवन प्रदान कर सकता है।



               © सतीश  कुमार सोनी 
               जैतहरी जिला अनूपपुर (म०प्र०) 

 



Friday 15 May 2020

चलो कुछ लिखते हैं : सतीश कुमार सोनी


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                           चलो कुछ लिखते है


आज मैं मन के ख्वाब लिखूँ,
या लिख दूं कोई ऐसा गीत। 
हो चित्त प्रसन्न सबका यह मन,
शब्द ना करे भयभीत। 

शब्द करें मेरे दिल की बात,
हो कुछ इसका ऐसा अंदाज। 
करे मंत्रमुद्ध और विवश पठन को,
हर पंक्ति कहे कविता का राज। 

प्रेम विरग, श्रंगार मिला दूं,
या घोल दूं कोई ऐसा राग। 
मिल सब कोई बात सिखा दे,
हो जाये इससे अनुराग। 

शब्द-शब्द में यश हो ऐसा,
संत की वाणी में मधुरस जैसा। 
सभी के मन को तृप्त करे यह, 
चाहे व्यक्ति हो कैसा। 

चिंतन को मजबूर करा दे,
लेखक के भावों को बतलादे। 
दे जाये कोई सीख जरा सी,
शब्दो की महिमा को समझादे।

अंत सुशोभित हो इसका,
सबके मन में घर कर जाये। 
हो कुछ ऐसी बात भी इसमें,
ना पढने वाला भी पढ जाये । 


© सतीश कुमार सोनी
जैतहरी, जिला-अनूपपुर (म्‍0प्र0)


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Wednesday 13 May 2020

मै मजदूर हूं: सतीश कुमार सोनी



                                    मै मजदूर हूं

देश की मैं नींव हूं,
सबसे बड़ा गरीब हूं।
दो जून की रोटी की खातिर,
घर छोड़ने को मजबूर हूं।
क्योंकि मैं मजदूर हूं।..-2

पसीने से सींच कर,
मैंने करोड़ो महल बनाए।
जब आयी मुसीबत मुझ पर,
तो महलों के ही मालिक न अपनाएं।

धूप पसीने से मैंने,
खुद को जला डाला।
तब जाकर बच्चों की खातिर,
मैं ला पाया एक निवाला।
इस पेट की खातिर सब सहने को मजबूर हूं,
क्योंकि मैं मजदूर हूं।...-2

महलों के जो बन बैठे मालिक,
हवाई यात्रा कर रहे।
और हम घर जाने की खातिर,
पैदल चलते-चलते मर रहे।
चलते चलते पैरों में मोटे छाले पड़ गए,
कुछ ने तो देखा साहब, 
कुछ देखकर भी निकल गए।

झूठे यह सरकारी पुतले,
ना जाने क्या क्या कह गए।
भोजन देने की आड़ में,
हमारा मजाक बना कर चले गए।
इस भूख और लाचारी में, फोटो खिंचाने को मजबूर हूं।
क्योंकि मैं मजदूर हूं।। क्योंकि मैं मजदूर हूं।।

©सतीश कुमार सोनी।
जैतहरी, जिला - अनूपपुर (म०प्र०)

Monday 11 May 2020

मातृ दिवस पर प्रतियोगिता

नव सृजन सर्वांगीण विकास संस्थान पटना, बिहार द्वारा संचालित आन लाइन कविता प्रतियोगिता विषय- मातृ दिवस पर मौलिक रचनाएं, जो कि 09/05 से 10/05/2020 तक दो दिवसों में कार्यक्रम संपन्न हुआ। जिस पर मैंने एक प्रतिभागी के तौर पर भाग लिया। जिसके  लिए मुझे संस्थान के द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त हुआ।


मेरी मां
मै नव सृजन सर्वांगीण विकास संस्थान पटना, बिहार का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं जिसने मुझे यह मंच प्रदान किया।



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Tuesday 5 May 2020

आन लाइन कविता प्रतियोगिता


नव सृजन सर्वांगीण विकास संस्थान पटना, बिहार  द्वारा संचालित आन लाइन कविता प्रतियोगिता विषय-कोरोना महामारी के नकारात्मक एवं सकारात्मक प्रभाव पर दिनांक 28/04 से 01/05/2020 तक चार दिवसीय कार्यक्रम सम्पन हुआ।  जिस पर मैंने एक प्रतिभागी के तौर पर भाग लिया। जिसके  लिए मुझे संस्थान के द्वारा सम्मान पत्र प्राप्त हुआ।

  • कोरोना महामारी पर 

  • हास्य दिवस 03/05/2020 
  • हास्य दिवस पर 
                               
  नव सृजन सर्वांगीण विकास संस्थान पटना, बिहार  के मंच का मै धन्यवाद करता हूँ।


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Friday 1 May 2020

कोरोना- आज और कल: सतीश कुमार सोनी

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देश दुनिया की ये लाचारी,
बनकर आयी कोरोना महामारी। 
हसते हुए इस विश्व जगत को,
सहमा गयी है यह बीमारी। 


मानव से यह प्रकृति त्रस्त है,
कोरोना, प्रकृति का ही मूक अस्त्र है। 
अब होते परेशान भला क्यों,
जब सब अपने में ही मदमस्त है। 

कोरोना की यह समस्या बडी है,
लोगो को जैसे लग गयी हथकड़ी है। 
प्रकृति की भी मार अजब है,
सारी कयासें धरी पड़ी है। 

जब से यह बीमारी ( कोरोना पॉजिटिव संख्या ) बढ़ी है,
आर्थिक मंदी बडी चढ़ी है। 
कैसे अब संभलेगा भारत,
सामने यह चुनौती खड़ी है। 

कुछ, कोरोना की भी है बात निराली,
इसने फिर से ला दी है हरियाली। 
दिखलाया हिमालय कम करके प्रदूषण,
और हर घर में दिखी एकता की दीवाली।

यह धुंआ और कचरा जो सबके इर्द-गिर्द है,
किया है साफ और ओजोन का भर दिया छिद्र है। 
दुनिया को एक नया पाठ सिखाने,
आया प्रकृति का कोई इष्ट मित्र है। 

प्रकृति प्रेम और प्रकृति समपर्ण,
नहीं काम के ये धन-आभूषण। 
इस धरा को निर्मल स्वच्छ बनाने,
अपना कर दे तू सबकुछ अपर्ण। 

और अब बस आस कर तू प्रयास तू,
दूर-दूर रहकर ही बात कर तू। 
सब बदलेगा पर समय लगेगा,
जीवन पर विश्वाश रख तू, जीवन पर विश्वाश रख तू। 

रचना-   सतीश  कुमार सोनी 
     
        जैतहरी, जिला-अनूपपुर (म० प्र०)      

  

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