देश दुनिया की ये लाचारी,
बनकर आयी कोरोना महामारी।
हसते हुए इस विश्व जगत को,
सहमा गयी है यह बीमारी।
जैतहरी, जिला-अनूपपुर (म० प्र०)
मानव से यह प्रकृति त्रस्त है,
कोरोना, प्रकृति का ही मूक अस्त्र है।
अब होते परेशान भला क्यों,
जब सब अपने में ही मदमस्त है।
कोरोना की यह समस्या बडी है,
लोगो को जैसे लग गयी हथकड़ी है।
प्रकृति की भी मार अजब है,
सारी कयासें धरी पड़ी है।
जब से यह बीमारी ( कोरोना पॉजिटिव संख्या ) बढ़ी है,
आर्थिक मंदी बडी चढ़ी है।
कैसे अब संभलेगा भारत,
सामने यह चुनौती खड़ी है।
कुछ, कोरोना की भी है बात निराली,
इसने फिर से ला दी है हरियाली।
दिखलाया हिमालय कम करके प्रदूषण,
और हर घर में दिखी एकता की दीवाली।
यह धुंआ और कचरा जो सबके इर्द-गिर्द है,
किया है साफ और ओजोन का भर दिया छिद्र है।
दुनिया को एक नया पाठ सिखाने,
आया प्रकृति का कोई इष्ट मित्र है।
प्रकृति प्रेम और प्रकृति समपर्ण,
नहीं काम के ये धन-आभूषण।
इस धरा को निर्मल स्वच्छ बनाने,
अपना कर दे तू सबकुछ अपर्ण।
और अब बस आस कर तू प्रयास तू,
दूर-दूर रहकर ही बात कर तू।
सब बदलेगा पर समय लगेगा,
जीवन पर विश्वाश रख तू, जीवन पर विश्वाश रख तू।
रचना- सतीश कुमार सोनी
जैतहरी, जिला-अनूपपुर (म० प्र०)
बहुत सुंदर, कोमल पदों में कोरोना के प्रभाव की विवेचना। बहुत-बहुत बधाई।
ReplyDeleteशुक्रिया सर। 🙏
DeleteAchha najariya he is samasya ko dekhne ka.
ReplyDeleteshukriya 🙏
DeleteRight sir
ReplyDeletethanks Pankaj.
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